महात्मा गांधी और महराजगंज के बीच एक खास रिश्ता है। दोनों का जन्म 2 अक्टूबर को हुआ। बापू 1869 में जन्मे और महराजगंज ठीक 120 साल बाद 1989 को बना। उससे पहले तक यह गोरखपुर जिले का हिस्सा था। नेपाल की दक्षिणी और उप्र की पूर्वोत्तरी सीमा पर स्थित जिले महराजगंज के महात्मा गांधी से कुछ और रिश्ते भी हैं। मसलन 5 अक्टूबर 1929 को गांधी जी ने महराजगंज में सभा की और पूरा जिला गांधीमय हो गया।
अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ गांव के गांव उठ खड़े हुए। मई 1931 में जमींदारों ने महराजगंज के खेसरारी गांव को लुटवा दिया, क्योंकि ग्रामीण बढ़ी हुई दर पर लगान नहीं दे रहे थे। महराजगंज के ग्रामीणों पर अत्याचार का यह मामला महात्मा गांधी ने इंग्लैंड की गोल मेज कांफ्रेंस में भी उठाया। ऐसे रोचक इतिहास वाले महराजगंज में 19 मई को मतदान होना है। भाजपा यहां अपनी सीट बचाने की हर कोशिश कर रही है तो गठबंधन और कांग्रेस सीट छीनने की कोशिश में हैं। जनता किन मुद्दों पर मतदान करने वाली है? जातियों की पकड़ कितनी मजबूत है? राष्ट्रीय मुद्दों पर कैसी बहस चल रही है? इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की आशीष त्रिपाठी और अभिषेक राज ने...
महराजगंज देश की ऐसी लोस सीटों में से एक है, जिसका पहला सांसद निर्दलीय था। 1957 में पहली बार महराजगंज लोस सीट बनी और निर्दलीय प्रो. शिब्बन लाल सक्सेना ने सभी दलों को हरा कर जीत हासिल की थी। उन्होंने यह सफलता 1971 में भी दोहराई। फिलहाल इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। सांसद पंकज चौधरी छठी बार जीत के लिए जूझ रहे हैं। उन्होंने भाजपा के टिकट पर ही 1991 से 1998 तक तीन चुनाव लगातार जीते थे। उसके बाद 2004 और 2014 में भी वह सांसद चुने गए।
इस बार उनका मुकाबला गठबंधन के प्रत्याशी सपा नेता अखिलेश सिंह से है, जिन्होंने 1999 में यह सीट जीती थी। कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत पत्रकारिता का कॅरिअर छोड़ कर चुनाव में उतरी हैं। उनके पिता हर्षवर्धन दो बार (1989 और 2009) इस सीट से सांसद चुने गए थे। शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा ने बाहुबली पूर्वमंत्री अमरमणि त्रिपाठी की बेटी तनुश्री त्रिपाठी को प्रत्याशी बनाया था। दिलचस्प बात यह कि प्रसपा द्वारा तनुश्री को प्रत्याशी घोषित करने के एक दिन बाद जारी लिस्ट में कांग्रेस ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। बाद में उनकी जगह कांग्रेस ने सुप्रिया श्रीनेत को उम्मीदवार बनाया। अंतत: तनुश्री ने चुनाव के लिए पर्चा ही नहीं भरा। मुख्य मुकाबले में भाजपा, गठबंधन और कांग्रेस ही हैं। महराजगंज लोस सीट के तहत आने वाले पांच विस क्षेत्र में चार पर भाजपा का कब्जा है। एक सीट नौतनवां पर निर्दलीय अमनमणि त्रिपाठी विधायक हैं।
महराजगंज क्षेत्र के कस्बों से गांवों तक राष्ट्रीय मुद्दे चर्चा में तो हैं लेकिन अंतत: जातीय गणित मजबूत दिखती है। यह पिछड़ी बहुल सीट हैं, जहां तकरीबन 60 फीसदी आबादी पिछड़े वर्ग की है। अकेले पटनवार जाति के लोग 25 प्रतिशत से ज्यादा हैं। निषाद, ब्राह्मण और मारवाड़ी 10-10 प्रतिशत के करीब हैं। प्रत्याशी से कार्यकर्ता और मतदाता तक मुद्दों की बात करते हैं लेकिन अंदरखाने जाति ही प्रभावी दिखती है।
'न्याय' पर भरोसा नहीं, गठबंधन भला करेगा: शहर के सटे गांव धनेवा धनेई की गलियां सूनी पड़ी हैं। लगता ही नहीं इस इलाके में चुनाव हो रहा है। इस मुस्लिम बहुल गांव की आबादी 10 हजार से ज्यादा है। यहां सरकारी योजना के तहत 700 टॉयलेट बने। 100 घरों तक उज्ज्वला गैस कनेक्शन पहुंचे। 150 लोगों को सौभाग्य योजना से बिजली कनेक्शन मिला है। सैकड़ों किसानों को किसान सम्मान निधि भी मिली लेकिन इस गांव के ज्यादातर लोग भाजपा से खफा हैं।
प्रधान पति नसीम खान कहते हैं, 'हम विकास चाहते हैं, मंदिर-मस्जिद की बातें नहीं। जति-धर्म में बांट कर ध्यान भटकाने की कोशिश हो रही है।' उनके साथ मौजूद गांव के अकरम, फजुल्लाह, सादिक, इब्राहिम, मो. जगदैल और हामिद कहते हैं-हमें देश विरोधी कह कर बदनाम किया जाता है। हमारा गांव देखिए, हिन्दू-मुस्लिम सब साथ रहते हैं। मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं। इस समूह को केंद्र सरकार की तीन बातें सबसे खराब लगती हैं। नसीम कहते हैं-ह्णभाजपा सरकार काम से ज्यादा काम के प्रचार पर लगी रही। विकास उन्हीं इलाकों में किया जहां उन्हें वोट मिले। अकरम और सादिक इसमें जोड़ते हैं- ह्यभाजपा सरकार मुसलमानों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है। इन नौजवानों को कांग्रेस से बहुत उम्मीद नहीं है। गरीबों को 72 हजार रुपये देने वाली 'न्याय' योजना को वे कोरी बयानबाजी बताते हैं। इन सभी को गठबंधन पर भरोसा है। सादिक और हामिद कहते हैं- ह्य इस सरकार में खाद की बोरी में वजन कम कर दिया गया। खाद की कीमत भी बढ़ा दी गई। कांग्रेस से उम्मीद बेमानी है। हमारा भला गठबंधन सरकार में ही हो सकता है। इसलिए हम उसके साथ हैं। यही भाजपा को हराने में सक्षम है।