Loksabha Election 2019: बांसगांव: भाजपा और गठबंधन में कांटे की टक्‍कर


                        बांसगांव संसदीय सीट प्रारंभ से ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही है। वैसे तो यह संसदीय सीट गोरखपुर जिले का हिस्सा है मगर इसके दो विधानसभा क्षेत्र (रुद्रपुर और बरहज) देवरिया जिले में पड़ते हैं। इस संसदीय क्षेत्र की बहुतायत आबादी ग्रामीण है।आजादी की लड़ाई में भी इस क्षेत्र का बड़ा योगदान है। शौर्य की अनगिनत गाथाएं यहां की फिजा में गूंजती हैं। कुदरत ने तो इस क्षेत्र को अपार जल संपदा दी है, ऋतंभरा नदियां दी हैं पर जल की इस थाती को सहेज न पाने के चलते यह क्षेत्र बाढ़ की विपदा झेलने को अभिशप्त है। साल के तीन माह तो कुछ क्षेत्रों के लोग विस्थापन की दारुण त्रासदी का सामना करते ही हैं। उद्योग धंधे यहां नदारद हैं। कृषि पर निर्भरता ज्यादा है लेकिन उपेक्षित क्षेत्र होने के कारण कृषि भी हाशिए पर ही है। रोजी रोजगार तो विकराल समस्या है ही। कनेक्टिविटी के लिहाज से यहां स्थितियां बेहतर तो हुई हैं लेकिन अभी चुनौतियां ढेर सारी हैं। जनता की अपने नेताओं से आम शिकायत है कि वे ताजपोशी के बाद उनकी सुधि लेने नहीं आते। हर चुनाव में यह उम्मीद फिर जिंदा हो उठती है कि शायद इस बार हालात बदलें। पेश है विवेकानंद त्रिपाठी की ग्राउंड रिपोर्ट - 


रहजन के हो गए कभी रहबर के हो गए।


अब राह चलने वाले मुकद्दर के हो गए।


दिल का कहा जो माने तो जाती है उसकी बात ।


हम क्या करें कि हम तो इसी भर के हो गए ।


जमील अहमद आजमी की ये पंक्तियां सियासी हालात और आम जन की बेबसीको बयां करने के लिए मौजूं हैं । दो जिलों में फैले बांसगांव संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन खारिज होने के बाद से भाजपा और गठबंधन के बीच सीधी टक्कर है। भाजपा ने दो बार लगातार विजयी रहे युवा सांसद कमलेश पासवान पर हेट्रिक के लिए दांव लगाया है। वहीं गठबंधन ने दो बार रनर रहे सदल प्रसाद पर फिर से भरोसा जताया है। सदल बसपा की ओर से गठबंधन से साझा उम्मीदवार हैं। इस संसदीय क्षेत्र में चुनावी शोर शराबा भले न दिखता हो मगर मतदाता बेबाकी से अपनी पक्षधरता साझा कर रहे हैं। यह पक्षधरता जातीय भूगोल में ज्यादा दिख रही है। साथ-साथ सुख-दुख साझा करने वालों के बीच भी पाले खिंच गए हैं। कहीं कहीं हंसी ठिठोली के बीच अपने पसंदीदा नेता के कसीदे काढ़े जा रहे हैं तो कहीं वाकयुद्ध जारी है। मुद्दों के प्रति संजीदगी बिसरा दी गई है।


चौरीचौरा विधानसभा क्षेत्र : हमने अपनी यात्रा की शुरुआत बांसगांव के ऐतिहासिक विधानसभा क्षेत्र चौरीचौरा से की। हमारी पहली मुलाकात जनरल मर्चेंट राजकुमार से हुई। चुनाव का मिजाज पूछते ही बोले- हम तो फूल वाले हैं। हमने जीतने के बाद यहां के सांसद की शक्ल तक नहीं देखी मगर हम तो मोदी के नाम पर वोट दे रहे हैं। कहते हैं क्या नहीं मिला ? पहले बिजली आती ही नहीं थी आज जाती ही नहीं है। सड़कें ठीक हो गईं। समस्या के नाम पर वे पानी की समस्या बताते हैं। चमड़ा मंडी में पानी की टंकी बन कर खड़ी है। चालू हो जाय तो शुद्ध पानी की समस्या दूर हो जाय।


चंद कदम दूर सड़क के किनारे खड़े छोटे लोडर चलाने वाले कुछ चालकों राजेश,अजय, शिवदान, रमेश, अनवर, नाजिर ने चुनाव का हाल पूछते ही समवेत स्वर में प्रत्याशी की जगह मोदी, योगी का नाम लिया। उनकी नजर में छोटे लोडरों से जिले की सीमा लांघते ही मनमाना शुल्क वसूली बड़ी परेशानी है। बताते हैं पीपीगंज में महाराज जी (योगी जी)ने खत्म करा दिया मगर कुछ जगह नगरपालिका के नाम पर हम छोटे लोडर चालकों से शुल्क लिए जा रहे हैं। पिपराइच में भी वसूली जारी है। इसी बीच दो चालकों ने नगर पंचायत गौरी बाजार और नगरपालिका परिषद देवरिया की पर्चियां दिखाईं। जहां पर कहीं 45 तो कहीं 65 रुपये का शुल्क प्रतिदिन लिया जा रहा है। सिटिंग सांसद के क्षेत्र में न आने की शिकायत यहां भी मिली। चौरीचौरा थाने से आगे चाय की दुकान में बहस छिड़ी थी। यहां मौजूदा सांसद के प्रति जबरदस्त गुस्सा था। सोहनलाल जायसवाल बोले यहां से तो भाजपा जा रही है। हमने दो बार सांसद रहे पासवान की जीतने के बाद शक्ल नहीं देखी। कहा इस क्षेत्र की असली नेता तो शारदा देवी  और बेचन राम (पूर्व एमएलए) थे। वे हफ्ते 15 दिन में क्षेत्र की जनता के बीच जरूर आते थे। हम मोदी के खिलाफ नहीं मगर इस बार सांसद को खामियाजा भुगतना पड़ेगा। शरीफ और सुभान अली भी उनसे सहमति जताते हैं। वहीं बैठे गेरुआधारी उदयी बोले थानों में तो लूट मची है। जो काम 500 में होता था उसके 5000 मांगे जा रहे हैं। राहुल गांधी के 72000 रुपये देने के वादे पर उदई  तल्ख हो गए। कहा- कब्बो दिहले बांट ? 40-50 साल उनही क खानदान सत्ता में रहल काहें न दे दिहलं, तब गरीबी नाहीं रहे?